इस एपिसोड से मुझे यह समझ में आया कि कभी भी किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी को एक समान मानना चाहिए।अब ज़रा गुरु के सिंहों के बारे में ध्यान से सुनिए — दस लाख सैनिकों से टक्कर लेने वाले, जो सूरमाओं की गिनती में आते हैं। चालीस की संख्या में चमकौर के युद्ध में वीरता से लड़ते हुए बलिदान देने वाले जोड़ी लड़ाके थे, जो अपने साथियों के साथ पाले गए थे।
छोटे साहिबजादे — बाबा ज़ोरावर सिंह और फतेह सिंह — अपनी दादी जी के साथ थे। रास्ते में उन्हें गंगू ब्राह्मण मिला, जो माताजी और बच्चों को अपने गांव खेड़ी ले आया। यह वही गंगू था जो पहले गुरुघर में सेवा करता था, रसोइया था और लंगर बनाता था। लेकिन वह भीतर से दगाबाज़ था। उसने रात को माताजी को दो मंजी (खाट) लाकर दी। माताजी ने कहा, "हमें एक मंजी की ही ज़रूरत है, क्योंकि मेरे पोते मुझसे कभी दूर नहीं सोते।"
रात होते-होते बच्चे अपनी दादी से कहने लगे, “अब माताजी, पिताजी और बड़े भाई हमें लेने आएंगे, तो हम उनके साथ नहीं जाएंगे।” बच्चे जानते थे कि वे बलिदान देने वाले परिवार से हैं, और उनका आत्मबल अपार था। उधर गंगू ब्राह्मण का असली चेहरा सामने आया — वह बेईमान हो गया। उसने रात को माताजी की सोने की थैली चुरा ली। वह यह भूल गया कि जिसकी थैली वह चुरा रहा है, वह वही बुज़ुर्ग माता है, जिसकी जवानी में उसके पति ने हमारे तिलक और जनेऊ की रक्षा के लिए दिल्ली के चांदनी चौक पर अपना सिर दे दिया था।
गंगू यह भी भूल गया कि हमारे हिंदू धर्म को बचाने के लिए गुरु तेग बहादुर जी ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था। इस घटना से यह सीख मिलती है कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति हो — चाहे हमारे गुरु हों या आमजन — हमें उनके उपकारों को कभी नहीं भूलना चाहिए। कभी भी किसी के साथ धोखा नहीं करना चाहिए, जैसा कि गंगू ब्राह्मण ने माता जी के साथ किया। गंगू ब्राह्मण को यह याद रखना चाहिए था कि जिन गुरुजी ने हमारा तिलक और जनेऊ बचाने के लिए अपना सिर दे दिया, उनके परिवार के साथ धोखा करना कितना बड़ा अधर्म है।
Sakshi Pal
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