गुरु नानक देव जी की यात्राएं और उनका सार्वभौमिक संदेश
गुरु नानक देव जी ने मक्का की यात्रा की थी। उनके साथ उनके शिष्य भाई मर्दाना भी थे, जो मुस्लिम थे और मक्का जाना चाहते थे। मक्का में गुरु नानक देव जी एक आरामगाह में लेट गए, और उनके पैर काबा की दिशा में थे। एक हाजी जियॉन ने जब गुरु नानक जी को इस प्रकार लेटे हुए देखा, तो उसने विरोध किया और नाराज़गी ज़ाहिर की। गुरु नानक देव जी ने शांति से उत्तर दिया कि वे थके हुए हैं और उन्हें नहीं पता कि काबा किस दिशा में है। उन्होंने जियॉन से कहा, "मेरे पैर उस दिशा में कर दो, जहाँ काबा नहीं है।"
जब जियॉन ने उनके पैर दूसरी दिशा में घुमाए, तो यह देखकर चकित रह गया कि काबा भी उसी दिशा में घूम गया। तभी उसे बोध हुआ कि ईश्वर हर दिशा में है, हर ओर, हर स्थान पर व्याप्त है। मक्का की यह यात्रा सिख इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है, जो गुरु नानक देव जी के सर्वधर्म समभाव, समानता, और ईश्वर की सर्वव्यापकता के संदेश को दर्शाती है। गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली यात्रा के दौरान पटना का दौरा भी किया था। यह यात्रा 16वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई, जब वे पूर्व दिशा की ओर यात्रा कर रहे थे। पटना में उन्होंने पश्चिम द्वार से प्रवेश किया।
गुरु नानक देव जी ने कई देशों और क्षेत्रों की यात्राएं कीं, जिनमें श्रीलंका भी शामिल था। उन्होंने वहां सिख धर्म और उसके मूल संदेशों का प्रचार किया। उनकी श्रीलंका यात्रा का वहां के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने श्रीलंका के नागपट्टनम, जाफना, नयिनतिवु, त्रिंकोमाली, बट्टीकलोआ आदि स्थानों का दौरा किया। श्रीलंका यात्रा के दौरान राजा शिवनाथ से भी उनकी मुलाकात का उल्लेख मिलता है।
यह यात्रा गुरु नानक देव जी के जीवन और सिख धर्म के प्रसार में अत्यंत महत्वपूर्ण रही।
"God is one but He has innumerable forms. He is the creator of all and He Himself takes human form."
रूबल कौर