Thursday, 6 November 2025

The Inner Life of Animals - Manjula Sagar

The Inner Life of Animals
By Peter Wohlleben

इस कहानी में लेखक तितलियों और पतंगों (moths) का उदाहरण देते हैं। तितलियाँ अपने रंग-बिरंगे पंखों और डिज़ाइनों से शिकारी पक्षियों को डराती हैं—जैसे मोर तितली के पंखों पर बड़ी आँखों जैसे निशान होते हैं, जो दुश्मनों को भ्रमित करते हैं। वहीं, पतंगें अपने भूरे और धूसर रंगों से पेड़ों की छाल में छिप जाती हैं ताकि दिन में उन्हें कोई देख न सके, क्योंकि वे तब सुस्त होती हैं और आसानी से शिकार बन सकती हैं। अगर किसी पतंगे का रंग पेड़ की छाल से मेल नहीं खाता, तो पक्षी उसे तुरंत पहचानकर खा सकते हैं।
इन उदाहरणों से लेखक दिखाते हैं कि प्रकृति दिखने में भले ही शांत और सुंदर लगे, लेकिन जानवरों के लिए यह निरंतर सतर्कता और जीवित रहने की चुनौती से भरी हुई है।
जानवर अपने मृत्यु के समय को पहले से महसूस कर लेते हैं और बहुत शांत ढंग से उसका सामना करते हैं। वे अपनी पुरानी बकरियों का उदाहरण देते हैं, खासकर एक का नाम श्वैनली (Schwänli) था, जो मरने से कुछ समय पहले झुंड से अलग हो गई थी। उसने डर या पीड़ा के बिना, सामान्य नींद की मुद्रा में आराम से लेटकर शांति से प्राण त्याग दिए, जिसे डिमेंशिया हो गया था। वह रास्ता भटक गई थी और बाद में उसके बेटे की कोशिशों से जंगल में एक धारा के पास शांति से लेटी हुई मिली। जंगली जानवरों में ऐसे मामलों को देखना मुश्किल होता है, क्योंकि मानसिक रूप से कमजोर जानवर शिकारीयों का आसान शिकार बन जाते हैं। यहाँ तक कि शिकारी जानवर भी जब बूढ़े या कमजोर हो जाते हैं, तो अक्सर भूख से मर जाते हैं।

इन अनुभवों के माध्यम से पता चलता हैं कि जानवर भी जीवन के अंत तक गरिमा और सहनशीलता के साथ बुढ़ापे और मृत्यु का सामना करते हैं। जानवर भी इंसानों की तरह उम्र बढ़ने के प्रभावों — शारीरिक कमजोरी, व्यवहारिक परिवर्तन और मानसिक गिरावट — से गुजरते हैं, और वे भी जीवन के पूरे चक्र का अनुभव करते हैं।

लेखक पीटर वोहलेबेन बताते हैं कि बुढ़ापा घोड़ों को किस तरह प्रभावित करता है, खासकर उनकी नींद और सुरक्षा को लेकर। वे समझाते हैं कि घोड़े भी इंसानों की तरह गहरी नींद लेते समय सपने देखते हैं — उस समय उनके पैर या होंठ हिलते हैं, जैसे वे सपने में दौड़ रहे हों या खा रहे हों। लेकिन गहरी नींद के लिए उन्हें ज़मीन पर लेटना पड़ता है, और वहीं सबसे बड़ा खतरा होता है।
इस उदाहरण से लेखक दिखाते हैं कि बूढ़े जानवर भी अपनी सुरक्षा के लिए आराम और विश्राम का त्याग कर देते हैं, और यह उनकी जीवित रहने की प्रवृत्ति का हिस्सा है।

अंत में लेखक यह सोचते हैं कि क्या जानवर अपनी मृत्यु के निकट आने का एहसास कर पाते हैं। जैसे कुछ मनुष्य अपनी मृत्यु का पूर्वाभास कर लेते हैं, वैसे ही कुछ जानवर भी अंत को शांत मन से स्वीकार कर लेते हैं। लेखक के अनुसार, जानवर केवल बुढ़ापे से नहीं गुजरते, बल्कि उन्हें जीवन और मृत्यु के प्राकृतिक चक्र की भी एक मूक समझ होती है।
इस कहानी के माध्यम से हम ये समझते हैं कि जानवरों में भी भावनात्मक गहराई, समझ और समुदाय की भावना होती है। वे न केवल अपने जीवन को, बल्कि मृत्यु को भी बुद्धिमत्ता और गरिमा के साथ स्वीकार करते हैं।

— Manjula Sagar
Sunbeam Gramin School

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