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भूल मत, प्यारे - रेवीदा भट्ट

Picture Courtesy: https://greatergood.berkeley.edu/article/item/how_gratitude_changes_you_and_your_brain    भूल मत, प्यारे -  A poem about Gratitude & it’s importance. यूँ चलता है आज सिर उठाकर, पीछे भी देखा कर कितनों ने हाथ बटाया है  देखता है आज इस ज़मीं के ऊपर  भूल मत किसी ने तुझे खड़ा होना भी सिखाया है।  चलता बना घर से, अब समय था विद्यालय जाने का, वही बस्ता लिए जिसमें डब्बा माँ ने भिजवाया था, तीन-चार घंटे के लिए ही, झुण्ड से बिछड़े हए परिंदे जैसे रहना- वह भी एक ज़माना था।  धीरे-धीरे बनाये दोस्त जिनका साथ मिलना ही  समय का खज़ाना था।  भूल मत, ए परिंदे, वह भी एक ज़माना था  जब घर से बाहर रहना भी  लगता घर के प्यार में समाना था, भूल मत उन्हें जिन्होंने तुझे घर से दूर तेरा एक और घर बनाया था।  अक्षरों का ज्ञान नहीं, कलम के इस्तेमाल से अनजान, भूल मत ज्ञानी, किसी ने तुझे कलम पकड़ना क्या, कलाम के बारे में भी पढ़ाया था, तभी जीवन में आया ज्ञान का अभिमान था।  कभी दोस्तों से लड़कर, घर आकर  प्यार तो तूने उन्हीं बाहों में पाया था, जिनमें तूने अपना जीवन सजाया था, माँ की ममतामयी नज़रों और पिता के र