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Sunday, 20 July 2025

देने का जज़्बा: इंसानियत की असली पहचान – Reena Devi

 

The more you give, the richer your soul becomes.

यही तो इंसानियत की असली पहचान है। इस दुनिया में सबसे कीमती चीज़ वही होती है जो बिना किसी स्वार्थ, बदले या उम्मीद के दी जाती है। जब हम किसी को कुछ देने का निर्णय लेते हैं—चाहे वह समय हो, प्रेम हो या मदद—तो उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान उभरती है। और उस मुस्कान को देखकर जो सुकून हमें मिलता है, वह सुकून पैसे से कभी नहीं खरीदा जा सकता। देना सिर्फ पैसे तक सीमित नहीं होता, बल्कि किसी की समस्या का समाधान ढूंढ़ना या उसे सहारा देना भी एक बड़ा "देना" होता है।

Giving is not always about material things.

अगर हम किसी को उसकी तकलीफ़ के समय यह एहसास दिला दें कि "मैं तुम्हारे साथ हूं," तो उसकी आधी समस्या वहीं खत्म हो जाती है। जब कोई टूट रहा हो और हम उसका हाथ थाम लें, या जब किसी अनजान को एक अच्छा शब्द कह दें—तो ये सभी छोटे-छोटे कार्य भी बहुत बड़े दान बन जाते हैं। जो हमें अपना समय देता है, वही हमारे लिए सबसे मूल्यवान होता है। देने वाला कभी छोटा नहीं होता; उसका दिल बड़ा होता है। क्योंकि जो व्यक्ति देना जानता है, वही एक सच्चा इंसान होता है। इस भीड़ भरी दुनिया में, जहां कोई किसी के काम नहीं आता, वहाँ निष्काम सहायता ही सच्ची मानवता है।

स्कूल के लंच टाइम में अगर किसी के पास लंच नहीं है, तो हम उसे अपना लंच दे सकते हैं। अगर हमारे पास अतिरिक्त स्टेशनरी है, तो हम उसे ज़रूरतमंद साथी को दे सकते हैं। मदद के लिए सिर्फ पैसे की नहीं, बल्कि सोच और भावना की ज़रूरत होती है। अगर हम चाहें, तो किताब, पेन या सिर्फ साथ देकर भी किसी की मदद कर सकते हैं। हमें अपने अंदर देने का जज़्बा बनाए रखना चाहिए और अपने आसपास के बच्चों को भी यह सिखाना चाहिए कि सच्चा इंसान वही है जो बिना उम्मीद, बिना शर्त के कुछ दे सके।

When we give, we heal. When we give, we grow.

यही देने की भावना, यही जज़्बा, इस मतलबी दुनिया में हमें बेहतर और बड़ा इंसान बनाता है।जो व्यक्ति बिना मांगे देता है, वही भगवान का रूप होता है। किसी की मदद करने या कुछ देने के लिए अमीर होना ज़रूरी नहीं होता।जैसे एक माँ अपने बच्चों के लिए बिना थके दिन-रात काम करती है, या जैसे एक दोस्त मुश्किल समय में बिना कहे मदद के लिए आ जाता है—ये सभी निस्वार्थ देने के उदाहरण हैं।बिल गेट्स ने भी एक बार कहा था, "एक हद के बाद पैसा मेरे किसी काम का नहीं। मैं उसे एक संस्था को देकर दुनिया को बेहतर बनाना चाहता हूँ।"

देने का जज़्बा बदलाव की पहली सीढ़ी है।

सच्चा दाता वही होता है जो बिना अपेक्षा के, दिल से देता है।

यज्ञ, दान और तप—ये तीनों कर्म कभी नहीं छोड़ने चाहिए।
दान एक पूर्ण कर्म है, लेकिन सबसे सुंदर वही दान है जो बिना अहंकार और बिना अपेक्षा के दिया जाए। मेरे अपने जीवन में भी देने का बहुत गहरा जज़्बा है। मैंने अपने स्कूल टाइम में अपने विद्यार्थियों की बिना बोले मदद की—कभी स्टेशनरी देकर, तो कभी किताबें। जब मैंने उन्हें चुपचाप वह चीजें दीं, तो उनके चेहरे की मुस्कान मुझे एक अनकहा सुकून दे गई। किसी की मदद करनी है तो बिना बताए करनी चाहिए, और सबसे बड़ी बात—उसे कभी यह एहसास नहीं होना चाहिए कि मैंने उसकी मदद की।

Those who give freely, live fully.

Reena Devi, Principal Arthur Foot Academy

Wednesday, 18 August 2021

मनुष्यता - कृतिका राजपुरोहित

‘मनुष्यता’ एक बहुत छोटा सा शब्द लगता है परंतु इसका अर्थ महत्वपूर्ण है। यह लोगों की एक दूसरे के प्रति भावना का आभास है। मनुष्यता के कई रूपों में दिखाई दे सकती है- जैसे सद्भावना, एक दूसरे की फिक्र करना, सहायता करना आदि। यह सब बोलना और देखना आसान है परंतु इन बातों पर अमल करना उतना ही कठिन है, कोई भी इंसान किसी की बुराई देखने में देर नहीं करता परंतु गुणों को देखने में देर करता है। आज की दुनिया में मानवता दर्शाने वाले कम और नफरत, निर्दयता दर्शाने वाले अधिक मिलेंगे। लोग एक दूसरे की कदर नहीं करते तो उनकी भावना के बारे में सोचना दूर की बात है मनुष्यता एक ऐसा गुण है जिसके होने पर सब अच्छा है परंतु न होने पर सब बुरा। मनुष्यता से ही मानव बनता है, इस समय लोग इसके आवश्यकता को नहीं समझ रहे हैं परंतु इसे समझना अनिवार्य है। यदि मनुष्यता नहीं तो मानव नहीं।  

लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं कि वह अपने अलावा दूसरों के बारे में बुरा ही सोचते हैं। ऐसा लिखने के पीछे भी तथ्य है, कोरोना महामारी के दौरान लोग दवाइयों की कालाबाजारी कर रहे हैं, जमाखोरी कर रहे हैं, इतना ही नहीं अन्य वस्तुओं की भी जमाखोरी करके उसको ऊँचे दाम पर बेच रहे हैं। 

मनुष्यता केवल बोलने से नहीं होती, यह एक भावना है जो किसी की परेशानी देखकर आती है और उसकी सहायता के लिए जब हम सबसे पहले खड़े रहे, तब समझ सकते है कि हममें मानवता है। आज जानवरों में मनुष्य से कहीं ज्यादा अपनापन है क्योंकि जानवर अपने स्वार्थ में किसी का बुरा नहीं सोचते और यदि हमें अपनी आने वाली समय को उज्जवल करना है तो आज ही हमें मनुष्यता का सही अर्थ समझना होगा। इस कठिन दौर में यह आवश्यक है कि हम हर इंसान के लिए मदद करने को तत्पर रहें। यह महामारी शायद हमें यही सीख देने के लिए है। 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज में रहता है। जब समाज में रहता है तो एक दूसरे की मदद करना भी आवश्यक है, तभी तो उसकी सामाजिकता दिखेगी। जब हम संकट में होते हैं तब मदद की गुहार लगाते हैं, ललचाए हुई निगाहों से चारों तरफ मदद की आस करते हैं। लेकिन कभी सोचा है जब कोई और संकट में था तब हमने मदद की या नहीं। स्वयं के लिए चिल्लाने लग जाएँगे परंतु अपनी तरफ से देने का प्रयास नहीं करेंगे।

समय की गरिमा को समझते हुए हमें एक दूसरे की मदद करने की आवश्यकता है। स्वार्थ सिद्धि छोड़कर एकजुट हो जाएँ तो यह महामारी दुम दबाकर भागेगी और मनुष्यता विजई होगी।

कृतिका राजपुरोहित 
 कक्षा- ग्यारहवीं (विज्ञान)