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Friday, 15 August 2025

स्वयं बदलाव बनो - साक्षी खन्ना

"स्वयं बदलाव बनो" सिर्फ एक प्रेरणादायक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक गहरा सिद्धांत है।

अक्सर हम समाज, माहौल और परिस्थितियों को बदलने की बातें करते हैं, लेकिन बदलाव की शुरुआत हमेशा हमारे भीतर से होती है। अगर हम चाहते हैं कि दुनिया में ईमानदारी, करुणा और न्याय हो, तो हमें पहले खुद में ये गुण लाने होंगे। यह सोच हमें जिम्मेदार बनाती है, क्योंकि जब हम अपने व्यवहार, सोच और दृष्टिकोण को बेहतर बनाते हैं, तो हमारे आसपास के लोग भी उससे प्रेरित होते हैं।

यह ठीक वैसा है जैसे एक दीपक जलाकर अंधेरे में रोशनी फैलाना—रोशनी की शुरुआत खुद से होती है और फिर धीरे-धीरे पूरे वातावरण को उजाला देती है। कभी-कभी यह रास्ता कठिन होता है, क्योंकि बदलाव का मतलब है अपनी पुरानी आदतों, सोच और डर को छोड़ना। लेकिन हर कदम—चाहे वह ईमानदारी से बोलना हो, दूसरों की मदद करना हो या गलत के खिलाफ खड़े होना—समाज में बड़ा असर डाल सकता है।

"स्वयं बदलाव बनो" एक आह्वान है अपने भीतर झांकने का और यह सोचने का कि हम किस तरह के समाज का सपना देखते हैं। अगर हम बदलाव चाहते हैं, तो हमें इंतजार करना छोड़कर खुद वह बदलाव बनना होगा—यही असली क्रांति है।

बदलाव आसान नहीं होता। अपनी पुरानी आदतें छोड़कर, डर का सामना कर, और सही के लिए खड़ा होने में साहस चाहिए। कभी-कभी लोग आपके बदलाव को नज़रअंदाज़ करेंगे, लेकिन याद रखिए—इतिहास में हर बड़ा बदलाव ऐसे ही व्यक्तियों से शुरू हुआ है, जिन्होंने कठिनाइयों के बावजूद अपनी राह चुनी।

जब हम स्वयं बदलाव बनते हैं, तो हमारा प्रभाव सिर्फ हमारे जीवन तक सीमित नहीं रहता; यह हमारे परिवार, दोस्तों और समुदाय में भी एक चिंगारी जला देता है।

साक्षी खन्ना

बदलाव का बीज तुम्हारे भीतर है - साक्षी पाल

 
बदलाव की शुरुआत हमेशा भीतर से होती है। हम अक्सर चाहते हैं कि समाज, देश और दुनिया बेहतर हो जाए, लेकिन पहला कदम उठाने से डरते हैं। अगर हम सच में बदलाव देखना चाहते हैं, तो हमें अपने आचरण, सोच और कार्यों में सुधार लाना होगा।

महात्मा गांधी ने कहा था— "वह बदलाव बनो जो तुम दुनिया में देखना चाहते हो।" यह विचार हमें बताता है कि परिवर्तन का बीज हमारे भीतर है। अगर हम ईमानदारी, अनुशासन, दया, स्वच्छता और जिम्मेदारी को अपनाएँ, तो हमारा प्रभाव दूसरों पर भी पड़ेगा, और धीरे-धीरे समाज में सकारात्मक लहर दौड़ जाएगी।

इसका एक अद्भुत उदाहरण हैं जादव पायेंग—असम के एक साधारण किसान, जिन्होंने अकेले 40 साल तक पेड़ लगाकर 550 हेक्टेयर का घना जंगल तैयार कर दिया। यह सब उन्होंने तब शुरू किया, जब अपने गाँव के पास की बंजर ज़मीन और सूखती नदी देखकर उनका दिल पसीज गया। लोग कहते थे कि अकेले कोई कुछ नहीं कर सकता, लेकिन उन्होंने साबित कर दिया कि एक व्यक्ति भी पूरी धरती को हरियाली से ढक सकता है। आज वह जंगल असंख्य पशु-पक्षियों का घर है, और जादव पायेंग को "Forest Man of India" कहा जाता है।

उनकी कहानी यह सिखाती है कि अगर हम शिकायत करने के बजाय काम शुरू कर दें, तो बदलाव अपने आप रास्ता बना लेता है। चाहे कदम कितना भी छोटा हो, उसका असर समय के साथ बहुत बड़ा हो सकता है।

इसलिए, इंतज़ार मत करो कि कोई और आए और दुनिया को बदले—शुरुआत खुद करो, क्योंकि बदलाव का असली स्रोत हम खुद हैं।

"छोटे कदम से बड़े बदलाव की शुरुआत होती है।" 

साक्षी पाल

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