कृतज्ञता एक ऐसा भाव है, जो इंसान के हृदय को हल्का करता है और जीवन को गहराई से देखने की क्षमता प्रदान करता है। जब हम आभार प्रकट करते हैं, तो हम केवल दूसरों के प्रति ही नहीं बल्कि स्वयं के जीवन के प्रति भी संवेदनशील हो जाते हैं। कृतज्ञता हमें यह याद दिलाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, जीवन में हमेशा कुछ ऐसा होता है जिसके लिए हम आभारी हो सकते हैं।
कृतज्ञता का अर्थ केवल धन्यवाद कह देना नहीं है, बल्कि यह एक दृष्टिकोण है— जीवन को सकारात्मकता से देखने की कला। यह हमें सिखाती है कि छोटी-छोटी चीज़ें भी मायने रखती हैं— जैसे सूरज की पहली किरण, किसी प्रियजन की मुस्कान, या कठिन समय में मिला सहारा। जब-जब हम इन क्षणों को महसूस करते हैं, तो हमारे अंदर संतोष, शांति और अपनापन जागृत होता है। आधुनिक जीवन में हम अक्सर अपनी कमियों, अधूरी इच्छाओं या असफलताओं पर ही ध्यान केंद्रित कर लेते हैं। यही असंतोष तनाव और बेचैनी को जन्म देता है। लेकिन जब हम रुककर यह सोचते हैं कि हमें क्या-क्या मिला है—परिवार, दोस्त, स्वास्थ्य, अवसर, ज्ञान और अनुभव— तो जीवन अचानक समृद्ध प्रतीत होने लगता है। कृतज्ञता हमारी सोच को समृद्धि की ओर ले जाती है। इसके अलावा कृतज्ञता हमारे संबंधों को गहरा बनाती है। जब हम अपने माता-पिता, मित्रों, शिक्षकों या सहयोगियों के योगदान को स्वीकार करते हैं और दिल से धन्यवाद देते हैं, तो रिश्ते और भी मधुर हो जाते हैं।
आखिरकार, कृतज्ञता केवल एक भाव नहीं, बल्कि एक साधना है। यह हर दिन का अभ्यास है—सुबह उठकर जीवन को धन्यवाद देना, रात को सोने से पहले दिनभर के छोटे-बड़े उपहारों को याद करना। धीरे-धीरे यह हमारी आदत बन जाती है और हमें भीतर से और अधिक शांत, संतुलित और करुणामय बना देती है। इसलिए कहा जा सकता है कि कृतज्ञता जीवन का वह दीपक है, जो अंधेरों में भी रोशनी दिखाता है।
यह हमें याद दिलाता है कि हमारे पास जो भी है, वही पर्याप्त है और वही हमारे सुख का आधार है।
— साक्षी खन्ना, Arthur Foot Academy
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