Sunday, 27 July 2025

ईश्वर हर दिशा में है: मक्का से श्रीलंका तक गुरु नानक जी का संदेश - रूबल कौर

 

गुरु नानक देव जी की यात्राएं और उनका सार्वभौमिक संदेश

गुरु नानक देव जी ने मक्का की यात्रा की थी। उनके साथ उनके शिष्य भाई मर्दाना भी थे, जो मुस्लिम थे और मक्का जाना चाहते थे। मक्का में गुरु नानक देव जी एक आरामगाह में लेट गए, और उनके पैर काबा की दिशा में थे। एक हाजी जियॉन ने जब गुरु नानक जी को इस प्रकार लेटे हुए देखा, तो उसने विरोध किया और नाराज़गी ज़ाहिर की। गुरु नानक देव जी ने शांति से उत्तर दिया कि वे थके हुए हैं और उन्हें नहीं पता कि काबा किस दिशा में है। उन्होंने जियॉन से कहा, "मेरे पैर उस दिशा में कर दो, जहाँ काबा नहीं है।"

जब जियॉन ने उनके पैर दूसरी दिशा में घुमाए, तो यह देखकर चकित रह गया कि काबा भी उसी दिशा में घूम गया। तभी उसे बोध हुआ कि ईश्वर हर दिशा में है, हर ओर, हर स्थान पर व्याप्त है। मक्का की यह यात्रा सिख इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है, जो गुरु नानक देव जी के सर्वधर्म समभाव, समानता, और ईश्वर की सर्वव्यापकता के संदेश को दर्शाती है। गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली यात्रा के दौरान पटना का दौरा भी किया था। यह यात्रा 16वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई, जब वे पूर्व दिशा की ओर यात्रा कर रहे थे। पटना में उन्होंने पश्चिम द्वार से प्रवेश किया।

गुरु नानक देव जी ने कई देशों और क्षेत्रों की यात्राएं कीं, जिनमें श्रीलंका भी शामिल था। उन्होंने वहां सिख धर्म और उसके मूल संदेशों का प्रचार किया। उनकी श्रीलंका यात्रा का वहां के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने श्रीलंका के नागपट्टनम, जाफना, नयिनतिवु, त्रिंकोमाली, बट्टीकलोआ आदि स्थानों का दौरा किया। श्रीलंका यात्रा के दौरान राजा शिवनाथ से भी उनकी मुलाकात का उल्लेख मिलता है।

यह यात्रा गुरु नानक देव जी के जीवन और सिख धर्म के प्रसार में अत्यंत महत्वपूर्ण रही।

"God is one but He has innumerable forms. He is the creator of all and He Himself takes human form."

रूबल कौर

Reflecting Hearts, Growing Minds - PYDS Learning Academy

 

PYDS Reflections.pdf posted by Manisha Khanna, GSA Principal

The children are thrilled to attend Sunday School. Each week, they look forward to the stories and lessons that spark their curiosity and joy. But what they love most is the time they spend in quiet reflection, thinking deeply about what they've learned and how it touches their lives.

This habit of introspection isn't just meaningful—it's powerful. It helps them understand themselves and the world around them. Reflection makes them more thoughtful, responsible, and aware. In fact, it shapes them into better students, not just of books, but of life.

Seeds of Thought, Blooms of Change - Lotus Petal Foundation

Reflections- 20 July 2025.pdf Posted by Manisha Khanna

At Lotus Petal Foundation School, reflection is an integral part of the learning process. Here, students are encouraged not only to answer questions, but also to ask them about life, themselves, and society. After each lesson, they pause, ponder, and express their insights through stories, drawings, journals, and discussions. This creative culture of reflection empowers students to connect learning with lived experiences. It nurtures empathy, resilience, and originality. Whether sketching a lotus to represent hope or writing poems about kindness, their reflections bloom into ideas that shape a better tomorrow.


जानवरों का आंतरिक जीवन - Sunbeam Gramin School

अध्याय – आराम

जानवरों के लिए आराम का मतलब है कि वे अपने प्राकृतिक व्यवहार को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें और अपने वातावरण में सहज महसूस करें। इसमें पर्याप्त भोजन और पानी, उपयुक्त तापमान, सुरक्षित आश्रय, बीमारियों या चोटों से मुक्ति, सामाजिक संपर्क, सुरक्षा की भावना और तनाव या डर से मुक्ति शामिल है।

एक ऐसा वातावरण, जहाँ वे स्वतंत्र रूप से घूम सकें, खेल सकें और अपनी प्राकृतिक आदतों को पूरा कर सकें, वास्तव में उनके लिए आरामदायक होता है।

धन्यवाद।
सीमा

जानवरों के आराम या सुख का अर्थ है उनकी ज़रूरतों को पूरा करना। इसके लिए उन्हें एक ऐसा प्राकृतिक वातावरण मिलना चाहिए, जिसमें भोजन, पानी और सुरक्षित स्थान उपलब्ध हों।
हमें पेड़ों की कटाई कम करनी चाहिए, चिड़ियाघर और अभयारण्य जैसे स्थान बनाकर उन्हें संरक्षण देना चाहिए। ऐसे कार्य नहीं करने चाहिए जो उनके लिए हानिकारक हों या उन्हें कष्ट या चोट पहुँचाएँ।
इससे वे सुरक्षित और आराम से जीवन जी सकेंगे।

धन्यवाद।
सूरज पटेल

गुरुओं की कुर्बानी: एक भूलने योग्य नहीं कहानी - Sakshi Pal

इस एपिसोड से मुझे यह समझ में आया कि कभी भी किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी को एक समान मानना चाहिए।अब ज़रा गुरु के सिंहों के बारे में ध्यान से सुनिए — दस लाख सैनिकों से टक्कर लेने वाले, जो सूरमाओं की गिनती में आते हैं। चालीस की संख्या में चमकौर के युद्ध में वीरता से लड़ते हुए बलिदान देने वाले  जोड़ी लड़ाके थे, जो अपने साथियों के साथ पाले गए थे।

छोटे साहिबजादे — बाबा ज़ोरावर सिंह और फतेह सिंह — अपनी दादी जी के साथ थे। रास्ते में उन्हें गंगू ब्राह्मण मिला, जो माताजी और बच्चों को अपने गांव खेड़ी ले आया। यह वही गंगू था जो पहले गुरुघर में सेवा करता था, रसोइया था और लंगर बनाता था। लेकिन वह भीतर से दगाबाज़ था। उसने रात को माताजी को दो मंजी (खाट) लाकर दी। माताजी ने कहा, "हमें एक मंजी की ही ज़रूरत है, क्योंकि मेरे पोते मुझसे कभी दूर नहीं सोते।"

रात होते-होते बच्चे अपनी दादी से कहने लगे, “अब माताजी, पिताजी और बड़े भाई हमें लेने आएंगे, तो हम उनके साथ नहीं जाएंगे।” बच्चे जानते थे कि वे बलिदान देने वाले परिवार से हैं, और उनका आत्मबल अपार था। उधर गंगू ब्राह्मण का असली चेहरा सामने आया — वह बेईमान हो गया। उसने रात को माताजी की सोने की थैली चुरा ली। वह यह भूल गया कि जिसकी थैली वह चुरा रहा है, वह वही बुज़ुर्ग माता है, जिसकी जवानी में उसके पति ने हमारे तिलक और जनेऊ की रक्षा के लिए दिल्ली के चांदनी चौक पर अपना सिर दे दिया था।

गंगू यह भी भूल गया कि हमारे हिंदू धर्म को बचाने के लिए गुरु तेग बहादुर जी ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था। इस घटना से यह सीख मिलती है कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति हो — चाहे हमारे गुरु हों या आमजन — हमें उनके उपकारों को कभी नहीं भूलना चाहिए। कभी भी किसी के साथ धोखा नहीं करना चाहिए, जैसा कि गंगू ब्राह्मण ने माता जी के साथ किया। गंगू ब्राह्मण को यह याद रखना चाहिए था कि जिन गुरुजी ने हमारा तिलक और जनेऊ बचाने के लिए अपना सिर दे दिया, उनके परिवार के साथ धोखा करना कितना बड़ा अधर्म है।

Sakshi Pal

Reflections Since 2021